ये पूरा मामला राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के रतनपुरा गाँव का है, यहाँ रहने वाली प्रिया जाट नामक लड़की अपने प्रेमी के साथ पिछले दिनों घर से भाग गई, जब लड़की भाग गई तो परिजनों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, पुलिस ने तत्काल एक्शन लेकर लड़की को खोज निकाला और प्रेमी के साथ पुलिस थाने ले आये।
पुलिस ने जब प्रिया से उसके परिजनों के सामने बात की तो उसने अपने माता पिता और अन्य परिजनों को पहचानने से ही इंकार कर दिया, उसने कहा मैं इनको नहीं जानती और फिर अपने प्रेमी के साथ चली गई। बताते हैं कि प्रिया 18 साल की हो चुकी है यानि बालिग है तो पुलिस भी कुछ नहीं कह सकी।
अपनी बेटी के इस बर्ताव से परिजनों को बहुत धक्का लगा, उन्होंने इसे अपना अपमान माना और फिर घर पहुंचकर ऐसा कुछ किया जो आज चर्चा का विषय है। पिता ने एक शोक संदेश छपवाया उसमें लिखा – अत्यंत दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि नारायण लाल जी की सुपौत्री एवं भैरुलाल राठी की सुपुत्री सुश्री प्रिया जाट का स्वर्गवास गुरुवार 1 जून 2023 को हो गया है , जिनकी पीहर गौरणी शनिवार 13 जून 2023 को सुबह 9 बजे रखी गई है , सो पधारसी, संवत 2080 का, यानि परिजनों ने 13 जून को मृत्यु भोज का आयोजन किया है।
जीवित बेटी का शोक संदेश इस समय सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ट्विटर यूजर मनीष चौधरी ने इसे त्वीट करते हुए लिखा – भीलवाड़ा के रतनपुरा गांव में भेरूलाल जी लाठी की सुपुत्री प्रिया जाट 18 की होते ही अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ भाग गई और थाने में अपने मां बाप के लिए कहा कि मैं इनको नहीं जानती। इसके बाद परिवार ने उसकी गौरणी की चिट्ठियां बांट दी। बहुत अच्छी पहल, ऐसी औलादों के लिए यही अच्छा है, कई यूजर्स इस पर अपनी अलग अलग प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
यहाँ खास बात ये है कि प्रिया जिस लड़के के साथ घर से भागी वो उसी की जाति का है यानि ये कोई अंतरजातीय (इंटरकास्ट) या इंटररिलीजन वाला मामला नहीं है लेकिन परिजन उस लड़के को पसंद नहीं करते और फिर लड़की शादी से पहले भाग गई इसलिए मामला शोक संदेश तक पहुँच गया, जो इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है।
बहरहाल भले ही भारत ने मंगलयान भेज दिया, महाशक्ति बनने की तरफ बढ़ रहा हैं, दुनिया भारत को एक ताकतवर देश के रूप में देख रही है लेकिन सामाजिक रूप से अभी हम बहुत पिछड़े हैं, समाज की सोच को बदलने के लिए अभी बहुत प्रयास करने की जरूरत है। अपना जीवन साथी चुनने का हक़ लड़का लड़की को होना चाहिए बालिग बच्चों को संविधान भी ये हक़ देता है लेकिन इससे बच्चों को अपने माता पिता एवं परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने का अधिकार नहीं मिल जाता , ऐसे मामले आपस में बैठकर सुलझाने में ही खूबसूरती रहती है।
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