Delhi Mumbai Expressway : दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का अहमदाबाद से भरुच तक का हिस्सा इस साल दिसंबर तक शुरू हो जाएगा। जिसके बाद, सूरत से वलसाड तक का हिस्सा अगले साल जून तक तैयार हो जाएगा। बता दें कि एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य साल 2024 के दिसंबर तक पूरा करने की योजना है। हालांकि, केंद्र सरकार लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तैयार हो चुके हिस्से को खोला दिया है।
साथ ही, इसका नया खंड मध्य प्रदेश में तैयार है क्योंकि 244 किलोमीटर की दूरी का काम लगभग पूरा हो चुका है जो कि जनता के लिए जुलाई-अगस्त के आसपास खोल दिया जाएगा। मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाला दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का विस्तार मंदसौर, रतलाम और झाबुआ जिलों को कवर करेगा और गरोठ, जावरा, रतलाम और थांदला को जोड़ेगा।
12 घंटे में पूरा होगा सफर
दरअसल, दिल्ली से मुंबई का सफर वर्तमान में लगभग 20 से 22 घंटे का होता है लेकिन इस एक्सप्रेसवे के पूरा होने के बाद यह सफर केवल 12 घंटे में पूरा किया जा सकेगा। बता दें कि यह हाइवे विभिन्न शहरों, इंडस्ट्रियल एरिया सहित पर्यटन स्थलों को भी जोड़ेगा। इससे न केवल यात्रियों का समय बचेगा बल्कि उनकी ट्रेन और फ्लाइट पर निर्भरता भी कम होगी। इसके पहले सोहना से दौसा तक 210 किलोमीटर का एक्सप्रेसवे जनता के लिए खोला गया। वहीं, दिसंबर तक अहमदाबाद से भरुच तक का 190 किलोमीटर का हिस्सा शुरू हो जाएगा और फिर जून 2024 तक भरुच से सूरत और वलसाड तक का हिस्सा भी खोल दिया जाएगा।
1350 किलोमीटर होगी लंबाई
दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे (Delhi Mumbai Expressway) हरियाणा, गुरुग्राम के राजीव चौक से शुरू होकर मेवात, जयपुर, कोटा, भोपाल, और अहमदाबाद के माध्यम से मुंबई तक जाएगा। इस एक्सप्रेसवे की लंबाई 1350 किलोमीटर होगी। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India) ने इसे ऐसे डिज़ाइन किया है जिसे आवश्यकता के अनुसार आसानी से 8 लेन से 12 लेन में बदला जा सकता है। इससे दिल्ली और मुंबई के बीच की दूरी 220 किलोमीटर कम हो जाएगी। इसके अलावा, इस 1350 किलोमीटर के एक्सप्रेसवे का 20 किलोमीटर का हिस्सा रिजर्व फॉरेस्ट से भी गुजरेगा।
डीजल-पेट्रोल की होगी बचत
बता दें कि दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है। जिसके एक हिस्से को ई-हाईवे (इलेक्ट्रिक हाईवे) के रूप में विकसित किया जा रहा है। जिसमें ट्रक और बसें 120 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलेंगे। जिससे लॉजिस्टिक लागत में 70 फीसदी की कमी होगी। साथ ही, हर साल 32 करोड़ लीटर से अधिक डीजल-पेट्रोल की बचत होगी जो भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन को कम करेगी। इससे करीब 85 करोड़ किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी।