देश के इस गांव में किसी भी घर में नहीं जलता चूल्हा, अनोखी है यहां की परंपरा

पहले इस गांव में 1100 लोगों की आबादी थी, लेकिन अब यह घटकर 500 रह रही है, क्योंकि जीवनयापन, गुजर-बसर करने के लिए लोग शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं।

Unique Village of India : भारत देश अपने साथ बहुत से गौरवशाली इतिहास समेटे हुए हैं। यहां एक-से-बढ़कर-एक अनोखी चीज आपको देखने को मिलेगी। कोई शहर अपने रहस्यों के लिए जाना जाता है, तो कोई मंदिर होने के कारण धार्मिक स्थल के रूप में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। कुछ एडवेंचर के लिए काफी ज्यादा फेमस है, तो कुछ खान-पान के लिए लोगों को काफी ज्यादा पसंद आता है। कुछ अलग अनुभव यहां आने वाले लोग कर पाते हैं, क्योंकि यहां की वेशभूषा, संस्कृति, परंपरा, आदि सब कुछ अलग-अलग है। देश के चारों कोनों में आपको अलग महसूस होगा।

देश के इस गांव में किसी भी घर में नहीं जलता चूल्हा, अनोखी है यहां की परंपरा

वैसे तो हर जगह की अपने अलग-अलग खासियत होती है। कहीं का पहनावा-उढ़ावा अलग होता है, तो कहीं लोगों की बोली अलग होती है, कुछ लोगों का खान अलग होता है, तो कहीं की परंपरा उन्हें बाकी अन्य शहरों से अलग बनाती है। ऐसे ही एक गांव के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जहां एक भी घर में खाना नहीं बनता। जी हां, आपको यह सुनकर आश्चर्य जरूर होगा, लेकिन यह सत्य है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर यहां के लोग अपना जीवनयापन कैसे कर रहे हैं।

गुजरात में है स्थित

दरअसल, यह गांव गुजरात में स्थित है, जहां किसी के भी घर में खाना नहीं बनता और यहां पर बुजुर्गों की संख्या बहुत अधिक है। पहले इस गांव में 1100 लोगों की आबादी थी, लेकिन अब यह घटकर 500 रह रही है, क्योंकि जीवनयापन, गुजर-बसर करने के लिए लोग शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। जिस कारण यह संख्या काफी ज्यादा घट चुकी है, लेकिन यह पूरे देश भर में बहुत थी अजूबा गांव माना जाता है।

एकता की मिसाल

सबसे पहले हम आपको बता दें कि इस गांव का नाम चंदनकी है जो कि मेहसाणा जिले में स्थित है। यहां पर हर घर में खाना नहीं बनता, लेकिन एक सामुदायिक रसोई है। जिसमें पूरे गांव के लिए खाना बनता है। यह बेहद अनोखी परंपरा है कि लोग एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए एक-दूसरे के करीब आते हैं। यहां सभी लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, बातचीत करते हैं। जिससे गांव में एकता भी बनी रहती है। सबसे आश्चर्य वाली बात यह है कि इतने लोगों का खाना गांव की एक भी लोग नहीं बनाते, बल्कि इसके लिए उन्होंने रसोईया रखा है, जो 11000 रुपए महीने का लेता है।

मिल चुके हैं कई अवार्ड्स

इसके अलावा, गांव वाले मिलकर रसोइयों को ₹2000 भी देते हैं। यहां खाने के लिए एसी हॉल बनाया गया है, जिसमें सभी लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं। बता दें कि इस हॉल में एक साथ लगभग 40 लोग बैठकर एक साथ भोजन कर सकते हैं। इस रसोई को देखने के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं और इस अनोखी परंपरा का हिस्सा बनकर इसका आनंद उठाते हैं। मेनू की बात करें, तो यहां दोपहर के भोजन में दाल, चावल, रोटी, सब्जी और मिठाई दी जाती है, जबकि रात में खिचड़ी-कढ़ी, भाकरी-रोटी-सब्जी, मेथी गोटा, ढोकला, इडली-सांभर, आदि दी जाती है। अगर आप इस गांव को एक्सप्लोर करना चाहते हैं, तो आप यहां किसी भी समय जा सकते हैं। यहां पर अतिथियों का बहुत अच्छे से स्वागत किया जाता है। इस अनोखी परंपरा के कारण यह गांव पूरे देशभर में फेमस है। इस गांव को अब तक कई खिताब भी मिल चुके हैं।


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Sanjucta Pandit

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मैं संयुक्ता पंडित वर्ष 2022 से MP Breaking में बतौर सीनियर कंटेंट राइटर काम कर रही हूँ। डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन और बीए की पढ़ाई करने के बाद से ही मुझे पत्रकार बनना था। जिसके लिए मैं लगातार मध्य प्रदेश की ऑनलाइन वेब साइट्स लाइव इंडिया, VIP News Channel, Khabar Bharat में काम किया है। पत्रकारिता लोकतंत्र का अघोषित चौथा स्तंभ माना जाता है। जिसका मुख्य काम है लोगों की बात को सरकार तक पहुंचाना। इसलिए मैं पिछले 5 सालों से इस क्षेत्र में कार्य कर रही हुं।

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