नई दिल्ली।
नए मोदी कैबिनेट में मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा हो गया है।देश की पहली रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण निर्मला सीतारमण को नया वित्त मंत्री बनाया गया है।इससे पहले प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने 1970 से 1971 के बीच वित्त मंत्री का अतिरिक्त कार्यभाल संभाला था। ऐसे में पूर्णकालिक वित्त मंत्री बनकर निर्मला ने एक बार फिर इतिहास रच दिया।खास बात तो ये है कि निर्मला सीतारमण पेशे से अर्थाशास्त्री और समाज सेविका भी हैं, वह देश की कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इसके अलावा वो वित्त और कॉर्पोरेट अफेयर्स की राज्य मंत्री भी रहीं जो वित्त मंत्री अरुण जेटली के अंतर्गत आता ।उनकी इन्ही खूबियों को देखते हुए मोदी सरकार द्वारा उन्हें वित्तमंत्री बनाया गया है।
इससे पहले मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में वह देश की पहली महिला रक्षा मंत्री बनी थीं।50 साल बाद इस विभाग का जिम्मा महिला के पास है। इंदिरा गांधी ने 1969-1970 में वित्त मंत्रालय अपने पास रखा था। इसके अलावा सीतारमण को कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय संभालने का जिम्मा भी दिया गया है।उनकी जगह अब राजनाथ सिंह रक्षा मंत्रालय संभालेंगे। तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में 18 अगस्त 1959 को जन्मीं सीतरमण ने मंत्री के रूप में अपने काम से सबको प्रभावित किया है।लोकसभा चुनाव से पहले जब विपक्ष ने मोदी सरकार को राफेल मामले पर घेर लिया था तब संसद में जवाब देते हुए निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर जमकर पलटवार किया। संसद में दिया उनका भाषण लोगों को बेहद पसंद आया और देखते ही देखते उनके भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।
निर्मला सीतारमण का राजनीति सफर
निर्मला सीतारमण का जन्म 18 अगस्त 1959 को तमिलनाडू के मदुरै में नारायण सीतारमण के घर हुआ था। उन्होंने सीतालक्ष्मी रामास्वामी कॉलेज से बीए किया और साल 1980 में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री हासिल की।इसके बाद उन्होंने गैट फ्रेमवर्क के तहत इंडो-यूरोपियन टेक्सटाइल ट्रेड विषय पर पीएचडी की।वो नेशनल कमिशन फॉर वुमन की सदस्य भी रह चुकी हैं। साल 2006 में बीजेपी जॉइन की थी लेकिन साल 2014 में वो नरेंद्र मोदी के मंत्रालय का हिस्सा बनीं, इससे पहले वो बीजेपी के 6 प्रवक्ताओं में से एक थीं, जिनमें रविशंकर प्रसाद भी शामिल थे।निर्मला सीतारमण के पति डॉक्टर पराकाला प्रभाकर 2000 के शुरुआती दशक में बीजेपी की आंध्र प्रदेश इकाई के प्रवक्ता थे। इस दौरान निर्मला सीतारमण भी धीरे-धीरे बीजेपी में लोकप्रियता हासिल करती गईं। इसके बाद नितिन गडकरी के बीजेपी अध्यक्ष रहने के दौरान वर्ष 2010 में उन्हें बीजेपी का प्रवक्ता चुना गया। 26 मई 2016 को निर्मला सीतारमण ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के लिए राज्य मंत्री के तौर पर (इंडिपेंडेंट चार्ज) शपथ ली। इसके अलावा वो वित्त और कॉर्पोरेट अफेयर्स की राज्य मंत्री भी रहीं जो वित्त मंत्री अरुण जेटली के अंतर्गत आता ।
आने वाले समय में सामने होगी ये चुनौतियां
बेहतर रक्षामंत्री रहने के बाद सीतारमण के सामने वित्त मंत्री के रूप में अब उनकी असली परीक्षा होने वाली है। उन्हें ऐसे समय में यह जिम्मेदारी मिली है, जब अर्थव्यवस्था के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं।जिनमें से कुछ इस प्रकार है।
अर्थव्यवस्था में सुधार
हाल ही में जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुस्ती वित्त साल 2020 में भी बनी रह सकती है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसका तत्काल असर देखने को मिल सकता है।ऐसे में अब मोदी सरकार में वित्त मंत्री बनीं निर्मला सीतारमण के सामने सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना सबसे बड़ी चुनौती है। अर्थव्यवस्था की विकास दर वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में 6.3 फीसदी रहने की उम्मीद की जा रही है, जोकि पिछली छह तिमाहियों में सबसे कम होगी।
बेरोजगारी की समस्या
भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। बढ़ती आबादी में पर्याप्त रोजगार मुहैया कराना वित्त मंत्री और मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। NSSO ने भी बताया कि देश में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ज्यादा है. हालांकि सरकार ने इस डाटा को मानने कसे मना कर दिया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के सर्वे के मुताबिक नौकरी की तलाश वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है। इसका ये मतलब निकाला जा रहा है कि लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं बची है।
जीडीपी की घटती दर पर लगाम
मोदी सरकार और वित्त मंत्री सीतारमण के सामने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गिरती हुई दर पर लगाम लगाना भी एक चुनौती है. आने वाले वित्त वर्षों में जीडीपी की दर में सुधार लाना भारत के लिए बेहद जरूरी है। वित्त वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही से जीडीपी विकास दर लगातार घटती जा रही है। वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर 8 फीसदी थी जो दूसरी तिमाही में घटकर 7 फीसदी और तीसरी में 6.6 फीसदी पर आ गई।
घाटा कम करने का चैलेंज
निर्मला सीतारमण के सामने राजकोषीय घाटे को कम करने का भी बड़ा चैलेंज है। वित्त वर्ष 2018-19 में सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा गया था जिसे बाद में संशोधित कर 3.3 फीसदी कर दिया गया। फरवरी के अंत में राजकोषीय घाटा बढ़कर 8,51,499 करोड़ रुपये हो गया, जिसने बजट के अनुमान को भी पार कर लिया। इसके साथ ही ये जीडीपी का 4.52 फीसदी भी हो गया।
जीएसटी बनेगी चुनौती
निर्मला सीतारमण के सामने जीएसटी भी एक बड़ी चुनौती होने वाली है। बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में भी जीएसटी को सरल बनाने की बात कही थी।18 और 28 फीसदी के स्लैब में कई तरह के बदलावों और इसे खत्म करने की मांग भी होती रही है। इसके लिए भी नई मोदी सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे।
NPA और NBFC संकट
बैंकों के एनपीए का संकट अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि IL&FS की चूक के बाद NBFC में फंड की किल्लत का पहाड़ टूट पड़ा और NBFC संकट खड़ा हो गया। इंफ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट में पैसे डूब जाने की वजह से 91 हजार करोड़ रुपये का कर्ज डिफॉल्ट होने की कगार पर आ गया। इसकी वजह से एनबीएफसी की पाइपलाइन बंद हो गई. जिसे सुधारना जरूरी है।
प्राइवेट इनवेस्टमेंट बढ़ाने पर फोकस
निर्मला सीतारमण की एक और चुनौती प्राइवेट इनवेस्टमेंट को बढ़ाना है। फिस्कल ईयर 2015 में कुल फिक्स्ड कैपिटल फॉरमेशन जीडीपी का 30.1 फीसदी था। यह फिस्कल ईयर 2019 में घटकर 28.9 फीसदी रह गया है।
एक्सपोर्ट पर फोकस
चालू खाता घाटा (CAD) कम करने के लिए जरूरी है कि एक्सपोर्ट बढ़ाया जाए। क्रूड की कीमतों में उतारचढ़ाव से भारत का चालू खाता घाटा बढ़ जाता है। लिहाजा सरकार को निर्यात बढ़ाना होगा।
टैक्स
2016 में GST लागू होने के बाद से ही कारोबारी इसे लेकर परेशान हैं. निर्मला सीतारमण को GST को आसान बनाने के साथ टैक्स रेट स्लैब भी कम करना होगा। अभी तक जो आइटम GST से बाहर हैं उन्हें भी शामिल करना जरूरी है। कॉरपोरेट टैक्स को 35 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करने की मांग लंबे समय से चल रही है। फाइनेंस मिनिस्टर को इसपर भी फोकस करना होगा।