Gita Updesh : महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि पर हुआ था। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था। यह केवल एक पारिवारिक संघर्ष नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई थी। युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन अपने सगे-संबंधियों, गुरुजनों और मित्रों को युद्धभूमि में देखकर विचलित हो गए। अर्जुन ने अपने परिजनों और गुरुजनों के खिलाफ शस्त्र उठाने से इंकार कर दिया और भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन मांगा। उनकी मनोदशा को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने महज 45 मिनट में अर्जुन को जीवन के रहस्यों, कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के बारे में समझाया। उन्होंने बताया कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल सोचकर कर्म नहीं करना चाहिए, बल्कि निष्काम भाव से कर्तव्य का पालन करना चाहिए। एक क्षत्रिय का धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना है और अधर्म को समाप्त करना है। जिससे अर्जुन को यह समझ में आया कि श्रीकृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा हैं। इसे मूल रूप से संस्कृत भाषा में लिखा गया था, लेकिन अब इसका अनुवाद कई भाषाओं में किया जा चुका है। जिसमें हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी, आदि शामिल है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको कुछ बाते बताएंगे।
पढ़ें गीता उपदेश
गीता में लिखा है अपनी पीड़ा के लिए संसार को दोष मत दीजिए। अपने मन को समझाओ तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत है। अपनी पीड़ा और दुखों के लिए बाहरी संसार को दोष देना उचित नहीं है, बल्कि व्यक्ति को अपने मन को समझाना चाहिए और आत्म-परिवर्तन के माध्यम से अपने दुखों का समाधान करना चाहिए।
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥”
अर्थात, “मनुष्य को स्वयं ही अपना उद्धार करना चाहिए, स्वयं को नीचा नहीं गिराना चाहिए। मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र होता है और स्वयं ही अपना शत्रु।” इसका अर्थ यह है कि मनुष्य का मन ही उसे बंधन में डालता है और मन ही उसे मुक्त करता है। इसलिए अपने दुखों का निवारण अपने मन के परिवर्तन से ही संभव है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)