नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। देश में एक तरफ जहां पुरानी पेंशन योजना (old pension scheme) को लागू करने की मांग की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ रिटायरमेंट आयु (retirement age) को बढ़ाने पर मुद्दा भी तेजी से चर्चा में है। इसी बीच सेवानिवृत्ति की आयु जहां 65 से बढ़ाकर 68 वर्ष किए जाने की मांग की जा रही है। वहीं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति को भी 62 से बढ़ाकर 65 करने का प्रस्ताव तैयार हुआ था। इससे पहले सीजीआई एनवी रमना ने रिटायरमेंट आयु को 65 वर्ष से बढ़ाकर 68 वर्ष किए जाने की मांग का समर्थन किया था।
प्रस्ताव तैयार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ऋषभ राज ने इस पर टिप्पणी की है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि आज सर्वोच्च न्यायालय 76 हजार से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। ऐसे में न्याय वितरण प्रणाली में हो रही देरी को देखते हुए जहां आयु में वृद्धि जनहित और न्याय की दोनों में बड़ा फैसला हो सकता है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई है यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषभ राज का कहना है कि प्रौद्योगिकी के बढ़ने के साथ ही साथ व्यवस्थित और सुव्यवस्थित तरीके से सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार करते हुए कई बातों को ध्यान रखना अनिवार्य है।
अधिवक्ता वृषभ राशि का कहना है कि भारतीय अदालत मामले में एक बड़े बैकलॉग से गुजर रहा है और न्यायाधीशों की उम्र में वृद्धि से बैकलॉग को कम किया जा सकता है। वहीं उन्होंने बताया कि न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर अभी तक के आंकड़ों के अनुसार 4 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसे में सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाना न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के साथ ही साथ शासकीय दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
दरअसल एक और प्रस्ताव है, जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के माननीय न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु को क्रमशः 65 से बढ़ाकर 68 वर्ष और 62 से 65 वर्ष करने का है। सेवानिवृत्ति के बाद के उद्घाटन और कम आलोचना से बचने के लिए प्रस्ताव रखा गया है। जिसपर भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट ऋषभ राज का कहना है कि मंत्रालय एक संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश का जवाब दे रहे थे कि जब हम न्यायाधीशों की उम्र बढ़ाते हैं तो मौजूदा न्यायाधीशों को बनाए रखने में मदद मिलेगी, जो बदले में मामलों की रिक्ति और लंबित दोनों को कम करने में मदद करेगा।
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जानकारी के मुताबिक वेंकटचलैया रिपोर्ट (संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट, 2002) ने सिफारिश की कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष की जानी चाहिए और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 68 साल बढ़ाई जानी चाहिए। वहीँ उच्च और निचले दोनों न्यायालयों में आयु एकमत होनी चाहिए।
इससे पहले 2010 में संविधान (114वां संशोधन) विधेयक के माध्यम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 करने का आधा-अधूरा प्रयास किया गया था। हालांकि, इसे संसद में विचार के लिए नहीं लिया गया और 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ समाप्त हो गया। सेवानिवृत्ति की आयु हाल ही में चर्चा में आई जब CJI एन वी रमना ने कहा कि 65 वर्ष किसी के सेवानिवृत्त होने के लिए बहुत कम उम्र है। पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मामलों की लंबितता को कम करने के लिए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की सिफारिश की थी।
हालाँकि, जब हम सेवानिवृत्ति की आयु के बारे में बात करते हैं, तो 65 वर्ष को सेवानिवृत्त होने की आयु माना जाता है। वहीँ 65 वर्ष तक जो लोग स्वस्थ हैं उनके हित में ये फैसला लेना उचित हो सकता है। साथ ही, जब न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जाती है, तो यह न्याय वितरण प्रणाली में देरी के कारण भारतीय न्यायालयों में खोए हुए विश्वास को बहाल करने में मदद करेगा।