बालाघाट, सुनील कोरे। माता-पिता को बेटा मुखाग्नि देगा, तब ही उन्हें मोक्ष मिलेगा, इस तरह की रूढ़िवादी परंपराओं के बंधन को तोड़ते हुए दिवंगत मां का जब उनकी बेटियो में शमशानघाट में अंतिम संस्कार किया तो तो शमशान में उपस्थित लोगों के आंखो से आंसु छलक पड़े। बालाघाट (Balaghat) के खैरलांजी क्षेत्र के डोंगरिया में बेटी के साथ रह रही 85 वर्षीय भुरनबाई वडीचार के पति का देहावसान 10 साल पहले हो गया था। मूलतः कटंगी क्षेत्र के बाहकल निवासी भुरनबाई वडीचार आठ बेटियों में कोई बेटा नहीं होने के कारण वह अपनी बेटी और दामाद चतुर्भुज ढोमने के पास खैरलांजी क्षेत्र अंतर्गत डोंगररिया में पति की मृत्यु के बाद से रह रही थी। जिनका गत 6 जुलाई को निधन हो गया। जिनका अंतिम संस्कार गत 7 जुलाई को डोंगरिया में तालाब किनारे किया गया। जहां उनकी सभी आठ बेटियों सुशीला ढवरे, देवेश्वरी डोमडे, अर्चना येवले, अनिता ढोमने, सविता घुले, छाया रोकडे, रूखमणी ढोमने और ममता ढोमने ने हिंदु परंपराओं के तहत मां की अर्थी को कांधा देने के साथ ही उनका अंतिम संस्कार किया।
यह भी पढ़ें…Ratlam : दीनदयाल विचार मंच के सहयोग से कुष्ठ बस्ती में सपन्न हुआ टीकाकरण, 66 कुष्ठ रोगियों को लगा पहला डोज
लोगों के झलक पड़े आंसू
शमशान पर उस समय लोगों के आंसू छलक पड़े, जब एक बेटी ने श्मशान में रूढ़ीवादी परंपराओं के बंधन को तोड़ते हुए अपनी माता का अंतिम संस्कार किया। उसने बेटा बनकर हर फर्ज को पूरा किया, जिसकी हर किसी ने तारीफ की। अंतिम संस्कार में वह रोती रही, मां को याद करती रही, लेकिन बेटे की कमी को हर तरह से पूरा किया। अंतिम संस्कार में पहुंचे लोगों ने कहा कि एक माता के लिए अंतिम विदाई इससे अच्छी और क्या हो सकती है, जब पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए बेटियों ने बेटे का फर्ज निभाया।
मृतका भुरनबाई वडीचार एक सामान्य गृहणी थी और पति की मौत के बाद डोंगरिया में बेटी-दामाद के साथ रह रही थी। उनकी 8 बेटियां है। कोई बेटा नहीं था। जिनकी मृत्यु के बाद उनकी सभी आठ बेटियों ने हिन्दू रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार के सारे फर्ज पूरे किये। हमने अपनी माता का अंतिम संस्कार किया है और हम वह सभी कार्य करेंगे, जो एक बेटे को करनी चाहिये।
बेटियों का कहना है कि माता-पिता ने उनको बेटों की तरह पाला है, उनका कोई भाई नहीं है, माता-पिता ने कभी बहनों में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया। सभी को अच्छी शिक्षा दी। सभी बहनों का अच्छे घरों में विवाह किया। आज जमाना बदल गया है, पुरानी कुरीतियां रही हैं कि दाह संस्कार का काम केवल बेटे ही कर सकते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं है, जमाना बदल रहा है। जो काम बेटे कर सकते हैं, उस काम को बेटियां भी कर सकती हैं। आज महिलाओं का जमाना है, महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।