ग्वालियर, अतुल सक्सेना। मध्यप्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों के आरक्षण (Reservation) को चुनौती देने वाली याचिका के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार अब सुप्रीम कोर्ट (SC) जा रही है। ग्वालियर हाई कोर्ट (Gwalior HC) में सुनवाई प्रदेश सरकार ने आज समय मांगा था। प्रदेश सरकार की तरफ से कहा गया था कि वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा रही है इसलिए उसे 4 सप्ताह का समय दिया जाए। जिसके बाद हाई कोर्ट ने भी सरकार को 4 सप्ताह का समय दे दिया है।
दरअसल, नगरीय निकाय चुनावों (Urban Body Election) की सुगबुगाहट के बीच ग्वालियर हाई कोर्ट की खंडपीठ में अधिवक्ता मानवर्द्धन सिंह तोमर द्वारा इसकी आरक्षण प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी जिसमें याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी अभिभाषक अभिषेक सिंह भदौरिया द्वारा की गयी । याचिका पर पहली सुनवाई 10 मार्च 2021 को की गई और सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए समय देकर शुक्रवार 12 मार्च 2021 को सुनवाई के लिए नियत किया था।
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ग्वालियर हाईकोर्ट की युगल पीठ ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा कि चूंकि प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है कि 10 दिसंबर 2020 को जारी आरक्षण आदेश में रोटेशन पद्धति का पालन नहीं किया गया है और हाईकोर्ट ने एक अन्य प्रकरण में ऐसा मान्य किया है कि प्रथम दृष्ट्या आरक्षण रोटेशन पद्धति (Reservation rotation method) से ही लागू होना चाहिए ऐसी स्थिति में प्रकरण के अंतिम निराकरण तक उक्त आरक्षण का नोटिफिकेशन (Notification) दिनांकित 10 दिसंबर 2020 को पूर्ण रूप से स्थगित किया गया है l
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हाईकोर्ट ने मार्च में दो नगर निगम, 79 नगर पालिका, नगर पंचायत के आरक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगाने के बाद मध्य प्रदेश शासन से जवाब मांगा था। हाई कोर्ट में जवाब पेश करते हुए शासन की तरफ से कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेव 243 व नगर पालिका अधिनियम की धारा 29 में नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों के जो अध्यक्ष चुने जाने हैं, उनके पदों के आरक्षण का अधिकार शासन को दिया है। अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए जो पद आरक्षित किए जाते हैं, वह जनगणना के आधार पर तय किए जाते हैं। जनसंख्या के समानुपात के आधार पर आरक्षण किया जाता है। ऐसा नहीं है कि एक पद आरक्षित हो गया है, उसे दोबारा आरक्षित नहीं किया जा सकता। महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष व नगर पंचायत अध्यक्षों के पद आरक्षित करने में कोई गलती नहीं की है। कानून का पालन करते हुए आरक्षण किया गया है।
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लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से पेश की गई दलील सुनाने के बाद याचिकाकर्ता मानवर्द्धन सिंह तोमर ने कहा कि आरक्षण में रोस्टर का पालन नहीं किया गया था। जिसको लेकर उसने याचिका दायर की थी। लेकिन चूँकि अब मध्य प्रदेश सरकार ने याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बनाया है तो अब इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।