नीमच में किसानों और ग्रामीणों के लगातार विरोध के बीच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, इंदौर ने गोचर/चरनोई भूमि के वाणिज्यिक उपयोग पर महत्वपूर्ण और दूरगामी असर वाला आदेश जारी किया है। दायर जनहित याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए कोर्ट ने विवादित भूमि पर यथास्थिति (status quo) बनाए रखने के निर्देश देते हुए किसी भी प्रकार का निर्माण, बदलाव या कब्जा बढ़ाने पर रोक लगा दी है।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि जिस जमीन को वर्षों से चरनोई व गोचर के लिए आरक्षित माना जाता रहा, उसे निस्तार पत्रक में परिवर्तन कर वाणिज्यिक श्रेणी में डालते हुए सुविधि रेयॉन्स टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड, भीलवाड़ा को आवंटित कर दिया गया। ग्रामीणों का कहना है कि यह भूमि सदियों से चराई, सार्वजनिक उपयोग और ग्राम हित से जुड़ी रही है, ऐसे में इसका व्यावसायिक उपयोग कानून और परंपरा,दोनों के विरुद्ध है।
भूमि आवंटन को बताया नियमों का उल्लंघन
पिटीशनर की ओर से अधिवक्ता जगदीश कुमावत ने अदालत में तर्क रखते हुए कहा कि यह आवंटन मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि गोचर भूमि को किसी भी रूप में व्यावसायिक गतिविधि हेतु बदला नहीं जा सकता।
कोर्ट का अंतरिम आदेश, यथा स्थिति बनाये रखें
कोर्ट ने मामले को प्रथम दृष्टया गंभीर माना और अंतरिम आदेश में कहा कि विवादित भूमि पर आज जैसी स्थिति है, उसी रूप में बनी रहे। साथ ही प्रतिवादी पक्ष को निर्देश जारी किए गए हैं कि वे RAD मोड के माध्यम से नोटिस प्राप्त कर अपना जवाब प्रस्तुत करें। इसकी रिपोर्ट चार सप्ताह में अदालत में दाखिल करनी होगी।
ग्रामीणों ने निर्णय की सराहना की
हाईकोर्ट के इस आदेश से क्षेत्र में चल रहे विरोध आंदोलन को नई कानूनी मजबूती मिल गई है, वहीं ग्रामीणों ने फैसले को न्याय की दिशा में एक अहम कदम बताया है।
नीमच से कमलेश सारड़ा की रिपोर्ट





